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उन्हें आनंद जी का एक आम आदमी को थप्पड़ मारना अच्छा नहीं लगा. चिंता का यह कीड़ा उसे लगातार काटे जा रहा था जल्द ही वह सूखने लगा और एक दिन वह गुठली और छिलका के रूप में ही बस रह गया, उसके अंदर का सारा रस समाप्त हो गया https://lokhitkhabar.com/

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